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नई दिल्ली। तीन देशों की विदेश यात्रा के बाद भारत लौटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वागत करने के लिए एयरपोर्ट पहुंचे भाजपा (BJP) नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए तमिल भाषा को मानव इतिहास की सबसे पुरानी भाषा और हर हिंदुस्तानी की भाषा बताते हुए तमिल भाषा की किताब ‘थिरुक्कुरल’ का पापुआ न्यू गिनी में वहां की टोक पिसिन भाषा में अनुवाद के लोकार्पण का जिक्र किया।

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पीएम ने आदिवासी समुदाय को याद किया और साथ ही ऑस्ट्रेलियाई लोकतांत्रिक परंपरा का हवाला देते हुए इशारों-इशारों में नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने वाले विपक्षी दलों पर निशाना भी साधा। प्रधानमंत्री मोदी ने पापुआ न्यू गिनी में तमिल भाषा की क्लासिक किताब ‘थिरुक्कुरल’ को वहां की टोक पिसिन भाषा में रिलीज करने के वाकये का जिक्र करते हुए कहा कि दुनिया की सबसे पुरानी, मानव इतिहास की सबसे पुरानी भाषा, हर हिंदुस्तानी की भाषा ‘ तमिल भाषा’ की किताब ‘थिरुक्कुरल’ का पापुआ न्यू गिनी की टोक पिसिन भाषा में अनुवाद किया गया, तो उसके लोकार्पण का सौभाग्य उन्हें मिला। उन्होंने कहा कि इससे यह साबित होता है कि हिंदुस्तान की महान विरासत को आज दुनिया कैसे पूजने लगी है। वहां के गवर्नर के पूर्वज भी भारतीय हैं।

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प्रधानमंत्री मोदी ने देश के आदिवासी समाज का भी उल्लेख करते हुए कहा कि इस बार वे जिन देशों की यात्रा पर गए थे, उन देशों का मूल सामथ्र्य आदिवासी समाज ही है। इसलिए इस बार वे आदिवासी समाज के सामथ्र्य और उनसे जुड़ी चीजों के को लेकर इन देशों की विदेश यात्रा पर गए थे, ताकि भारत के आदिवासी समाज के सामथ्र्य से ये देश परिचित हो सके। ऑस्ट्रेलियाई लोकतांत्रिक परंपरा का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इशारों-इशारों में संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने वाले विपक्षी दलों पर भी निशाना साधते हुए कहा कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय के कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलिया के पीएम का आना हम सभी के लिए गौरव की तो बात है ही, लेकिन इतना ही नहीं, उस समारोह में पूर्व प्रधानमंत्री भी थे, विपक्ष के सांसद थे, सत्ता पक्ष के सांसद थे। सब के सब मिलजुल कर भारतीय समुदाय के इस कार्यक्रम में शामिल हुए थे। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है।

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आपको बता दें कि, 28 मई को संसद के नवनिर्मित भवन के उद्घघाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चोल साम्राज्य की प्राचीन परंपरा से जुड़े और तमिलनाडु से लाए गए पवित्र सेंगोल को संसद के नए भवन में लोक सभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित करेंगे। यह सेंगोल भारत के आजादी के वर्ष यानी 1947 में तमिलनाडु से लाया गया वही सेंगोल है जिसे 14 अगस्त 1947 को रात के 10:45 बजे के लगभग अंग्रेजों ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर देश के तत्कालीन और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था। लेकिन देश के 19 विपक्षी राजनीतिक दलों ने संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया है।

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