गौरेया पक्षी जिन्हें विज्ञान की भाषा में डोमेस्टिक कहा जाता हैं। इस छोटी सी चिड़िया से हम सब परिचित हैं। सूर्योदय होते ही हमारे उठने से पूर्व ही घर के आंगन में चहचहाने वाली गौरया ही है जो अक्सर घर के आंगन, घर के पेड़ों की डाल को अपना आशियाना बनाती थी। मानव और गौरेया का अटूट सम्बन्ध रहा है जहां-जहां मानव बसा यह चिड़िया उनके साथी की तरह अपने साथ ही रही।
अमेरिका, अफ्रीका, एशिया, न्यूजीलैंड हर महाद्वीप में गौरेया शहरों और गाँवों के घरों और पेड़ पौधों की रौनक बढाती थी। लेकिन आज गौरेया को देखने के लिए आँखे तरस जाती हैं। हमारी नई जीवन शैली ने उनके आवास को छीन लिया है। बंद घरों में इन चिड़ियाओं के प्रवेश को एक तरह के बंद कर दिया है। यही वजह हैं कि हम निरंतर उससे दूर से हो गये हैं। हमारा बचपन इन गौरेया को देखते-देखते बीता है। आज इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा हैं। इनकी संख्या में निरंतर गिरावट आ रही है। पिछले कुछ वर्षों से गौरेया की संख्या में 70 फीसदी की कमी आ गई है। रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस ने स्पैरो को रेड लिस्ट में शामिल किया है। यदि समय रहते हमने इसके संरक्षण के लिए कोई कदम नहीं उठाया तो निश्चय ही यह एक इतिहास का पक्षी बनकर रह जाएगा तथा हम और आने वाली हमारी पुश्तें इन्हें नहीं देख पाएंगी।
भूरे रंग की सफेद रंग की इस चिड़िया के शरीर पर छोटे-छोटे पंख, पीली चोंच की होती है। नर और मादा गौरैया के गर्दन पर काले धब्बा हैं। यह चिड़िया अक्सर हमारे ही घरों में ही रहते है। नर मादा को आम भाषा में चिड़ा कहा गया, ये हमेशा हमारे द्वारा बनाए छप्परों में ही रहा करते हैं। आवासीय ह्रास, अनाज में कीटनाशकों के इस्तेमाल, आहार की कमी और मोबाइल फोन तथा तेजी से लगते मोबाइल टावर के कारण गौरेया निरंतर कम होती जा रही हैं। 12 से 15 इंच लम्बी यह चिड़िया के गाने की आवाज बेहद मधुर होती हैं, घर के दाने पर ही इसका भोजन निर्भर करता हैं, घर के रोशनदानों में घास फूस का घौसला बनाकर गौरेया हमारे साथ ही रहा करती थी। हर साल 20 मार्च को विश्व गौरेया दिवस मनाया जाता है। इस प्रयास के जरिये आम लोगों में इसके प्रति जागरूकता पैदा करना है। जिससे इसके संरक्षण के लिए कदम उठाए जा सकें। बिल्ली, बाज, उल्लू आदि जीव आसानी से इसे शिकार बना लेते हैं। छोटी पूंछ की इस चिड़िया का वजन 30-40 ग्राम होता है। गौरेया जब धूल में नहाती है तो इसे वर्षा आने का शुभ संकेत माना जाता है। गौरेया पानी में तैरने में भी सक्षम है साथ ही 45 किमी की गति हवा में आसानी से उड़ सकती है। आओ हम सब मिलकर छोटा सा प्रयास करें और गौरैया संरक्षण के लिए अपने घरों की दीवारों या गैलरी पर गौरेया के लिये दाना पानी रखें।
(नीलेश कुमार विश्वकर्मा)