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नईदिल्ली। बसन्त विहार पुलिस को सुबह साढे छह बजे के करीब एक स्थानीय पुलिसकर्मी के गोली से घायल होने की सूचना मिलते ही पुलिस पूर्वी-मार्ग पर बनी चौकी पर पहुंची। घटनास्थल से पुलिस ने कांस्टेबल राकेश (35) को खून से लथपथ बुरी तरह से घायल अवस्था दौरान बेहोशी की हालत मे पाया। डीसीपी इंगित प्रताप सिह अनुसार ड्यूटी पर तैनाती दौरान घायल कांस्टेबल राकेश के सिर की दाहिनी ओर सरकारी पिस्तौल पड़ी हुई मिली। गोली सिपाही के सिर के दाहिनी ओर से बाईं तरफ से आर पार होकर बाहर निकल गई थी। जिसके चलते उसे गंभीर हालत में एम्स के ट्रामा-सेंटर में भर्ती करवाया गया, यहां उसकी स्थिति अति नाजुकीय बनी हुई है। पीड़ित घायल द्वारा यह गोली आत्महत्या के इरादे से खुद चलाई गई थी या फिर उसके साथ अनहोनी घटना को अंजाम तो नहीं दिया गया? इसके लिए क्राइम व फॉरेंसिक लैब टीम मौके वारदात से साक्ष्य जुटाने के बाद यह घटना हत्या या आत्महत्या का प्रयास था? पुलिस केस दर्ज कर इस मामले को हरेक एंगल से जोड़कर गहनता से तफ्तीश करते हुए पुख्ता सबूत जुटाने में लगी है। यदि इस मामले में कांस्टेबल द्वारा आत्महत्या का प्रयास था तो समझ नहीं आता,आए दिन दिल्ली पुलिस जवान जन-संरक्षण हेतु मिली सरकारी हथियार से ड्यूटी पर तैनात रहते हुए अपनी ही खाकी-वर्दी को लहूलुहान करते क्यों नजर आते हैं? यह दिल्ली पुलिस-व्यवस्था पर एक बड़ा व अहम सवालिया निशान है यह दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ आला अधिकारियों के लिए चिंताजनक अतिगंभीर व गहन-जांच का विषय है। पुलिस जवानों के ऊपर बढ़ते मानसिक-तनाव को कम करने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा सहज व संवेदनशील कदम उठाना अत्यंत अनिवार्य है। अभी हाल में विजयनगर थाना प्रभारी सुधीर कुमार ने शराब पीकर नशे की हालत में रात आपातकालीन ड्यूटी पर तैनात एसआई उमेश कुमार को अश्लील गालियां बकते हुए ड्यूटी से बर्खास्त करने की धमकी दे डाली। जिससे बुरी तरह आहत हुए उमेश कुमार ने वरिष्ठ आला अधिकारियों से शिकायत दर्ज करवाकर दोषी एसएचओ के खिलाफ कार्रवाई ना होने पर आहत होकर आत्महत्या करने की बात कही। इस मामले को संज्ञान में लेते हुए मौके पर पहुंचे वरिष्ठ अधिकारी द्वारा थाना प्रभारी सुधीर कुमार की अलमारी से पांच (रेड-लेबल) शराब की बोतलें मिलने पर एसएचओ को ड्यूटी पर तैनात रहते शराब पीकर नशे की हालत में (स्टाफ) एसआई उमेश से बदसलूकी करने के जुर्म में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। ऐसे मामलों को देख कर लगता है थाने के अंदर पुलिस-स्टाफ को अपने ऊपर बने अफसरों द्वारा अभद्र-भाषा तहत प्रताड़ना, नौकरी से निकालने की धमकी जरूरत से ज्यादा काम, पुलिस बल के जवानों की मानसिक-दशा को कहीं न कहीं प्रभावित करता है। ऐसा लगता है कहीं, इसी से आहत होकर पुलिस जवानों को जन-सुरक्षा हेतु मिले हथियार से अपनी वर्दी को ही लहू-लुहान करने पर मजबूर तो नही होना पड़ता है, वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जवानो के बढ़ते मानसिक-तनाव मद्देनजर पुलिस-बल जवानों के साथ समय रहते बैठक करके उनकी समस्याओं प्रति सुनवाई करते हुए उनके गिरते मनोबल स्तर को बढ़ाने के लिए उन्हें मानसिक तौर पर मजबूत करना अत्यंत आवश्यक है। ऐसे हादसों के चलते पुलिस-पब्लिक के बीच सुरक्षा नजरिए तहत बने विश्वास पर सवालिया-निशान खड़े होते हैं और आमजन का विश्वास डगमगाता नजर आता है, जो किसी भी हद तक पुलिस व आमजन के लिए कतई भी सही नहीं है।

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