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आज गुरू नानक जयंती के अवसर पर एक नज़र उनके दिखाए रास्ते पर डालते हैं, जिसकी आज सबको बहुत सख्त जरूरत है।

 

अमरप्रीत कौर भाटिया

गुरु नानक देव जी के शब्द हैं-
बाबा आखे हाजिया शुभ अमला बाजो दोनों रोई
जिसका अर्थ है कि बिना अच्छे कर्मों के कोई बड़ा नहीं हो सकता, ना हिंदू बड़ा है, ना मुसलमान।

गुरू ग्रंथ साहिब जी में दर्ज पांचवे नानक जी (गुरू अर्जन देव जी) की बाणी-
ना हम हिन्दू, ना मुसलमान अलह राम के पिंड प्राण
जिसका अर्थ है कि ना मैं हिंदू हूं, ना मुसलमान
इस देह में जो प्राण है वो अल्लाह के, राम के, दोनों के भगवान के हैं।

वो मरजाना जिनको गुरू साहिब के साथ ने मरदाना बना दिया, एक मुसलमान जिन्होंने अपना सारा जीवन गुरू साहिब के साथ बिताया और अमर हो गए। दरबार साहिब की नींव रखने वाले साईं मिया मीर मुसलमान, ऐसे प्यार के अनेकों उदहारण हमें मिल जाएंगे।
जब गुरू साहिब तिब्बत जाते हैं तो नानक लामा हो जाते हैं, जब मक्का मदीना जाते हैं तो नानक शाह हो जाते है और जब जगन्नाथ पूरी जाते हैं तो फकीर नानक हो जाते हैं।

गुरू साहिब कहते हैं-
पानी, प्राण, पवन, बंध राखे चंद सूरज मुख दिए,
मरण जीवन को धरती दीनी एत गुण विसरे
जिसका अर्थ है कि उस भगवान ने हमें पानी, पवन दिए, इस देह में प्राण दिए, चांद और सूरज रूपी दीपक दिए, जीने मरने के लिए ये धरती दी, इतना सब भूल गए।
पेड़ नहीं देखते कि सांस किस मज़हब का इंसान ले रहा, नदी नहीं देखती उसके जल से किसकी प्यास बुझ रही, चांद-सूरज किसी की जाति देख कर रोशनी नहीं देते।

शायद इस महामारी के समय हम इसकी अहमियत को ज्यादा समझ सकें। जब इंसान ही इंसान के काम आया।
हमें अपने बच्चों को दसवें नानक (गुरू गोविंद सिंह जी) की बाणी मानस की जाति सभै एके पहचानबो सिखाना होगा ताकि इंसान का आपसी प्रेम बना रहे।

निदा फाजली जी की बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है-
सब की पूजा एक सी, अलग-अलग रीत,
मस्जिद जाएं मौलवी, कोयल गाए गीत,
चाहें गीता बाचिए या पढ़िए कुरान तेरा-मेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान।

अंत में मैं वीर बीर सिंह जी की कविता से सबको गुरू पर्व की शुभकामनाएं देना चाहूंगी।
मैं मंदर दे विच अल्लाह-अल्लाह बोलांगा,
ते मैं गुरूद्वारे विच नाम राम दा बोलांगा,
मैं घर खुदा दे जा बालू मोमबत्तियां,
इसू दे घर जा के रोज़ा खोलांगा।
इक दा पाठ है पढ़ेया, एक नू जपदा हा,
नानक दा पुत हा तेरह तेरह तोलांगा,
इक सार है पाणी गंगा ते हरमंदिर दा,
चौधर दा सारा झगड़ा नहीं कोई अंदर दा
इको रुख दिया शाखा आपस विच लड़ दिया ने,
मैं हर नफरत विच प्यार पतासा खोलंगा,
नानक दा पुत हा तेरा तेरा तोलंगा,

रब देयो बंदेयो रब करके उस रब नू जानो,
मजहबियो वखरे वी छड के इक पहचानो,
जख्मा नाल चेहरा लहू लुहान होवे,
पर मैं मानवता दे चरणी हंजू डोलांगा
नानक दा पुत हा तेरा तेरा तोलांगा।

-अमरप्रीत कौर भाटिया

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